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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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फ़सीह अकमल

ग़ज़ल 17

अशआर 12

उम्र भर मिलने नहीं देती हैं अब तो रंजिशें

वक़्त हम से रूठ जाने की अदा तक ले गया

हमारी फ़त्ह के अंदाज़ दुनिया से निराले हैं

कि परचम की जगह नेज़े पे अपना सर निकलता है

जिन्हें तारीख़ भी लिखते डरेगी

वो हंगामे यहाँ होने लगे हैं

बहुत सी बातें ज़बाँ से कही नहीं जातीं

सवाल कर के उसे देखना ज़रूरी है

मुद्दआ इज़हार से खुलता नहीं है

ये ज़बान-ए-बे-ज़बानी और है

पुस्तकें 9

 

ऑडियो 12

अल्लाह रे हौसला मिरे क़ल्ब-ए-दो-नीम का

असर उस को ज़रा नहीं होता

आज दिल बे-क़रार है मेरा

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