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फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

1923 - 2009 | मऊनाथ भंजन, भारत

शायरी में एक आज़ाद सृजनात्मक अभिव्यक्ति के लिए प्रसिद्ध

शायरी में एक आज़ाद सृजनात्मक अभिव्यक्ति के लिए प्रसिद्ध

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

ग़ज़ल 44

अशआर 31

उस की क़ुर्बत का नशा क्या चीज़ है

हाथ फिर जलते तवे पर रख दिया

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किसी लम्हे तो ख़ुद से ला-तअल्लुक़ भी रहो लोगो

मसाइल कम नहीं फिर ज़िंदगी भर सोचते रहना

ख़बर मुझ को नहीं मैं जिस्म हूँ या कोई साया हूँ

ज़रा इस की वज़ाहत धूप की चादर पे लिख देना

तुझे हवस हो जो मुझ को हदफ़ बनाने की

मुझे भी तीर की सूरत कमाँ में रख देना

हर इक क़यास हक़ीक़त से दूर-तर निकला

किताब का कोई दर्स मो'तबर निकला

पुस्तकें 8

 

ऑडियो 10

आँखों के ख़्वाब दिल की जवानी भी ले गया

आह को बाद-ए-सबा दर्द को ख़ुशबू लिखना

जबीं पे गर्द है चेहरा ख़राश में डूबा

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