फ़ाज़िल अंसारी
ग़ज़ल 16
अशआर 1
मुझ पर ब-तौर-ए-ख़ास थी उस की निगाह-ए-लुत्फ़
कहता मैं किस तरह मिरे दुश्मन में कुछ न था
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere