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ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

1914 - 1993 | दिल्ली, भारत

एक मशहूर शायर और तरक़्क़ी-पसंद ऐक्टिविस्ट, जिन्होंने क्लासिकी और तरक़्क़ी-पसंद शायरी को ख़ूबसूरती से हम-आहंग किया, और उर्दू साहित्य पर अपनी अमिट छाप छोड़ी

एक मशहूर शायर और तरक़्क़ी-पसंद ऐक्टिविस्ट, जिन्होंने क्लासिकी और तरक़्क़ी-पसंद शायरी को ख़ूबसूरती से हम-आहंग किया, और उर्दू साहित्य पर अपनी अमिट छाप छोड़ी

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

ग़ज़ल 38

अशआर 23

ग़ुबार-ए-राह चला साथ ये भी क्या कम है

सफ़र में और कोई हम-सफ़र मिले मिले

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जनाब-ए-शैख़ समझते हैं ख़ूब रिंदों को

जनाब-ए-शैख़ को हम भी मगर समझते हैं

तबाहियों का तो दिल की गिला नहीं लेकिन

किसी ग़रीब का ये आख़िरी सहारा था

निखर गए हैं पसीने में भीग कर आरिज़

गुलों ने और भी शबनम से ताज़गी पाई

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हमारी तरह ख़राब-ए-सफ़र हो कोई

इलाही यूँ तो किसी का राहबर गुम हो

पुस्तकें 45

वीडियो 3

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
At a mushaira

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

बस्ती में कमी किस चीज़ की है पत्थर भी बहुत शीशे भी बहुत

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

ऑडियो 10

कमाल-ए-बे-ख़बरी को ख़बर समझते हैं

किसी के हाथ में जाम-ए-शराब आया है

गुलों के साथ अजल के पयाम भी आए

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