हैरत इलाहाबादी
ग़ज़ल 28
अशआर 5
आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं
सामान सौ बरस का है पल की ख़बर नहीं
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कहा आशिक़ से वाक़िफ़ हो तो फ़रमाया नहीं वाक़िफ़
मगर हाँ इस तरफ़ से एक ना-महरम निकलता है
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सुनी न एक भी ज़ालिम ने आरज़ू दिल की
ये किस के सामने हम अर्ज़-ए-हाल कर बैठे
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