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इदरीस आज़ाद

इदरीस आज़ाद

ग़ज़ल 22

अशआर 21

ईद का चाँद तुम ने देख लिया

चाँद की ईद हो गई होगी

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मैं तो इतना भी समझने से रहा हों क़ासिर

राह तकने के सिवा आँख का मक़्सद क्या है

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इतने ज़ालिम बनो कुछ तो मुरव्वत सीखो

तुम पे मरते हैं तो क्या मार ही डालोगे हमें

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कौन काफ़िर है जो खेलेगा दियानत से यहाँ

जब मिरी जीत है वाबस्ता तिरी हार के साथ

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मैं जिस में दफ़्न हूँ इक चलती फिरती क़ब्र है ये

जनम नहीं था वो दर-अस्ल मर गया था मैं

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Recitation

aah ko chahiye ek umr asar hote tak SHAMSUR RAHMAN FARUQI

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