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इफ़्तिख़ार आज़मी

1935 - 1977

इफ़्तिख़ार आज़मी

ग़ज़ल 4

 

नज़्म 8

अशआर 4

हुस्न यूँ इश्क़ से नाराज़ है अब

फूल ख़ुश्बू से ख़फ़ा हो जैसे

कितना सुनसान है रस्ता दिल का

क़ाफ़िला कोई लुटा हो जैसे

अजब तनाव है माहौल में कहें किस से

कहीं पे आज कोई हादसा हुआ तो नहीं

शोर-ए-दरिया-ए-वफ़ा इशरत-ए-साहिल के क़रीब

रुक गए अपने क़दम आए जो मंज़िल के क़रीब

पुस्तकें 9

 

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