aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1943 | इस्लामाबाद, पाकिस्तान
पाकिस्तान में अग्रणी शायरों में शामिल, अपनी सांस्कृतिक रूमानियत के लिए मशहूर।
मिट्टी की मोहब्बत में हम आशुफ़्ता-सरों ने
वो क़र्ज़ उतारे हैं कि वाजिब भी नहीं थे
ये वक़्त किस की रऊनत पे ख़ाक डाल गया
ये कौन बोल रहा था ख़ुदा के लहजे में
तुम से बिछड़ कर ज़िंदा हैं
जान बहुत शर्मिंदा हैं
ज़माना हो गया ख़ुद से मुझे लड़ते-झगड़ते
मैं अपने आप से अब सुल्ह करना चाहता हूँ
बेटियाँ बाप की आँखों में छुपे ख़्वाब को पहचानती हैं
और कोई दूसरा इस ख़्वाब को पढ़ ले तो बुरा मानती हैं
Ahadis Ke Urdu Tarajim
Angrezi Par Urdu Ka Asar
1997
अक़्लीम-ए-हुनर
इफ़्तिख़ार अारिफ़: शख़्सियत-ओ-फ़न्न
2003
Bachon Ki Lughat
1995
Bagh-e-Gul-e-Surkh
Balochi Zaban-o-Adab Ki Mukhtasar Tareekh
Dagh Dehlvi
Kitabiyat
1996
देहली के अख़बारात-ओ-रिसाइल
2009
Faiz Ahmad Faiz
Faiz Sadi: Muntakhab Mazameen
Faiz Banam Iftikhar Arif
2011
ख़ुद को बिखरते देखते हैं कुछ कर नहीं पाते हैं फिर भी लोग ख़ुदाओं जैसी बातें करते हैं
दुआ को हात उठाते हुए लरज़ता हूँ कभी दुआ नहीं माँगी थी माँ के होते हुए
दिल पागल है रोज़ नई नादानी करता है आग में आग मिलाता है फिर पानी करता है
मिरे ख़ुदा मुझे इतना तो मो'तबर कर दे मैं जिस मकान में रहता हूँ उस को घर कर दे
अजब तरह का है मौसम कि ख़ाक उड़ती है वो दिन भी थे कि खिले थे गुलाब आँखों में
दुआएँ याद करा दी गई थीं बचपन में सो ज़ख़्म खाते रहे और दुआ दिए गए हम
ज़माना हो गया ख़ुद से मुझे लड़ते-झगड़ते मैं अपने आप से अब सुल्ह करना चाहता हूँ
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