इलियास इश्क़ी
ग़ज़ल 6
नज़्म 1
अशआर 5
इस उलझन को सुलझाने की कौन सी है तदबीर लिखो
इश्क़ अगर है जुर्म तो मुजरिम राँझा है या हीर लिखो
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उस की बालक-हट के आगे घर छोड़ा बैराग लिया
देखें क्या दिन दिखलाता है अब ये मूरख मन बाबा
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कोई क़र्या कोई दयार हो कहीं हम अकेले नहीं रहे
तिरी जुस्तुजू में जहाँ गए वहीं साथ दर-बदरी रही
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वक़्त आया तो ख़ून से अपने दाग़-ए-नदामत धो लेंगे
साया-ए-ज़ुल्फ़ में जागने वाले साया-ए-दार में सो लेंगे
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वही आग अपना नसीब थी कि तमाम उम्र जला किए
जो लगाई थी कभी इश्क़ ने वही आग दिल में भरी रही
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