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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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इम्तियाज़ ख़ान

1989 | गुड़गाँव, भारत

समकालीन नौजवान शायरों में नुमायाँ, ख़ूबसूरत लफ़्ज़ों में नाज़ुक और अछूते एहसासात की शायरी के लिए मशहूर

समकालीन नौजवान शायरों में नुमायाँ, ख़ूबसूरत लफ़्ज़ों में नाज़ुक और अछूते एहसासात की शायरी के लिए मशहूर

इम्तियाज़ ख़ान

ग़ज़ल 16

अशआर 4

हम को अक्सर ये ख़याल आता है उस को देख कर

ये सितारा कैसे ग़लती से ज़मीं पर रह गया

एहसान ज़िंदगी पे किए जा रहे हैं हम

मन तो नहीं है फिर भी जिए जा रहे हैं हम

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राह-ए-दिल को रौंद कर आगे निकल जाएँगे लोग

आँख में उठता ग़ुबार-ए-क़ाफ़िला रह जाएगा

क्या यूँही ख़ामोश दुनिया से गुज़र जाएँगे हम

क्या जो कहना है वो सब कुछ अन-कहा रह जाएगा

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