इंद्र मोहन मेहता कैफ़
ग़ज़ल 14
अशआर 1
कुछ इंसाँ थे कुछ मज़हब थे एक ख़ुदा था
और उस एक ख़ुदा के कारन सब झगड़ा था
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere