इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल 89
अशआर 47
कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं
बहुत आगे गए बाक़ी जो हैं तय्यार बैठे हैं
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere