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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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इक़बाल अज़ीम

1913 - 2000 | कराची, पाकिस्तान

इक़बाल अज़ीम के वीडियो

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

इक़बाल अज़ीम

इक़बाल अज़ीम

इक़बाल अज़ीम

इक़बाल अज़ीम

इक़बाल अज़ीम

इक़बाल अज़ीम

इक़बाल अज़ीम

इक़बाल अज़ीम

इक़बाल अज़ीम

इक़बाल अज़ीम

इक़बाल अज़ीम

इक़बाल अज़ीम

इक़बाल अज़ीम

इक़बाल अज़ीम

Reciting own poetry

इक़बाल अज़ीम

राह में जो भी रुकावट हो हटा देना है

इक़बाल अज़ीम

वो यूँ मिला कि ब-ज़ाहिर ख़फ़ा ख़फ़ा सा लगा

इक़बाल अज़ीम

अपने मरकज़ से अगर दूर निकल जाओगे

इक़बाल अज़ीम

अपने माज़ी से जो विर्से में मिले हैं हम को

इक़बाल अज़ीम

अल्लाह रे यादों की ये अंजुमन-आराई

इक़बाल अज़ीम

आँखों से नूर दिल से ख़ुशी छीन ली गई

इक़बाल अज़ीम

आप मेरी तबीअ'त से वाक़िफ़ नहीं मुझ को बे-जा तकल्लुफ़ की आदत नहीं

इक़बाल अज़ीम

कुछ ऐसे ज़ख़्म भी दर-पर्दा हम ने खाए हैं

इक़बाल अज़ीम

ज़ब्त भी चाहिए ज़र्फ़ भी चाहिए और मोहतात पास-ए-वफ़ा चाहिए

इक़बाल अज़ीम

ज़हर दे दे न कोई घोल के पैमाने में

इक़बाल अज़ीम

नक़्श माज़ी के जो बाक़ी हैं मिटा मत देना

इक़बाल अज़ीम

बिल-एहतिमाम ज़ुल्म की तज्दीद की गई

इक़बाल अज़ीम

माना कि ज़िंदगी से हमें कुछ मिला भी है

इक़बाल अज़ीम

सब समझते हैं कि हम किस कारवाँ के लोग हैं

इक़बाल अज़ीम

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TAIBA JO YAAD AYA professor iqbal azeem naat's by shoaib ameer

अज्ञात

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इक़बाल बानो

Apne markaz se agar door nikal jao ge

Apne markaz se agar door nikal jao ge अज्ञात

Jab un se mile

Jab un se mile अज्ञात

Mansab to hamein bhi mil sakte the

Mansab to hamein bhi mil sakte the अज्ञात

Mughe apne zabt pe naz tha

Mughe apne zabt pe naz tha अज्ञात

Shikast e zarf ko pindaar e rindana nahin kehte

Shikast e zarf ko pindaar e rindana nahin kehte अज्ञात

Shikwa bhi jafa ka kaise karein

Shikwa bhi jafa ka kaise karein अज्ञात

Tum naghma e mah o anjum ho

Tum naghma e mah o anjum ho अज्ञात

Yeh nigah e sharm jhuki jhuki

Yeh nigah e sharm jhuki jhuki अज्ञात

मुझे अपने ज़ब्त पे नाज़ था सर-ए-बज़्म रात ये क्या हुआ

मुझे अपने ज़ब्त पे नाज़ था सर-ए-बज़्म रात ये क्या हुआ मुन्नी बेगम

मुझे अपने ज़ब्त पे नाज़ था सर-ए-बज़्म रात ये क्या हुआ

मुझे अपने ज़ब्त पे नाज़ था सर-ए-बज़्म रात ये क्या हुआ नय्यरा नूर

कुछ ऐसे ज़ख़्म भी दर-पर्दा हम ने खाए हैं

कुछ ऐसे ज़ख़्म भी दर-पर्दा हम ने खाए हैं इक़बाल बानो

तुम ग़ैरों से हँस हँस के मुलाक़ात करो हो

तुम ग़ैरों से हँस हँस के मुलाक़ात करो हो सलमान अल्वी

रौशनी मुझ से गुरेज़ाँ है तो शिकवा भी नहीं

रौशनी मुझ से गुरेज़ाँ है तो शिकवा भी नहीं अज्ञात

शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

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