इक़बाल उमर
ग़ज़ल 28
नज़्म 5
अशआर 3
तमाम दिन मुझे सूरज के साथ चलना था
मिरे सबब से मिरे हम-सफ़र पे धूप रही
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जिन पर निसार नक़्द-ए-सुकूँ नक़्द-ए-जाँ किया
उन से मिले तो ऐसी नदामत हुई कि बस
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दुनिया ग़रीब जान के हँसती थी 'मीर' पर
'इक़बाल' मुझ पे ऐसे ये दुनिया हँसी कि बस
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