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इरफ़ान सिद्दीक़ी

1939 - 2004 | लखनऊ, भारत

सबसे महत्वपूर्ण आधुनिक शायरों में शामिल, अपने नव-क्लासिकी लहजे के लिए विख्यात।

सबसे महत्वपूर्ण आधुनिक शायरों में शामिल, अपने नव-क्लासिकी लहजे के लिए विख्यात।

इरफ़ान सिद्दीक़ी

ग़ज़ल 77

अशआर 96

उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिए

कि नींद शर्त नहीं ख़्वाब देखने के लिए

बदन में जैसे लहू ताज़ियाना हो गया है

उसे गले से लगाए ज़माना हो गया है

होशियारी दिल-ए-नादान बहुत करता है

रंज कम सहता है एलान बहुत करता है

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रात को जीत तो पाता नहीं लेकिन ये चराग़

कम से कम रात का नुक़सान बहुत करता है

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तुम परिंदों से ज़ियादा तो नहीं हो आज़ाद

शाम होने को है अब घर की तरफ़ लौट चलो

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पुस्तकें 17

चित्र शायरी 6

 

वीडियो 9

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

इरफ़ान सिद्दीक़ी

इरफ़ान सिद्दीक़ी

इरफ़ान सिद्दीक़ी

इरफ़ान सिद्दीक़ी

इरफ़ान सिद्दीक़ी

उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिए

इरफ़ान सिद्दीक़ी

जब ये आलम हो तो लिखिए लब-ओ-रुख़्सार पे ख़ाक

इरफ़ान सिद्दीक़ी

धनक से फूल से बर्ग-ए-हिना से कुछ नहीं होता

इरफ़ान सिद्दीक़ी

हल्क़ा-ए-बे-तलबाँ रँज-ए-गिराँ-बारी क्या

इरफ़ान सिद्दीक़ी

ऑडियो 24

उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिए

उन्हीं की शह से उन्हें मात करता रहता हूँ

कुछ हर्फ़ ओ सुख़न पहले तो अख़बार में आया

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