1832 - 1909 | लखनऊ, भारत
लखनऊ और रामपूर स्कूल के मिले-जुले रंग में शायरी के लिए माशूहर उत्तर- क्लासिकी शायर
इश्क़ की चोट का कुछ दिल पे असर हो तो सही
दर्द कम हो या ज़ियादा हो मगर हो तो सही
मैं ने पूछा कि है क्या शग़्ल तो हँस कर बोले
आज कल हम तेरे मरने की दुआ करते हैं
इक रात दिल-जलों को ये ऐश-विसाल दे
फिर चाहे आसमान जहन्नम में डाल दे
जिस ने कुछ एहसाँ किया इक बोझ सर पर रख दिया
सर से तिनका क्या उतारा सर पे छप्पर रख दिया
न हो बरहम जो बोसा बे-इजाज़त ले लिया मैं ने
चलो जाने दो बेताबी में ऐसा हो ही जाता है
Deewan-e-Som
Deewan-e-Jalal
1889
Ganjeena Zaban-e-Urdu
Gulshan-e-Faiz
1880
गुलदस्ता-ए-मारिफ़त
दीवान-ए-ज़ामिन
1913
कुल्लियात-ए-ज़ामिन
मुफ़ीद-उश-शोरा
1884
Nazm-e-Nigareen
1903
Qawaid-ul-Muntakhab
Risala Tazkeer-o-Tanees
1908
Sarmaya-e-Zaban-e-Urdu
इश्क़ की चोट का कुछ दिल पे असर हो तो सही दर्द कम हो या ज़ियादा हो मगर हो तो सही
इक रात दिल-जलों को ये ऐश-विसाल दे फिर चाहे आसमान जहन्नम में डाल दे
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