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जाज़िब क़ुरैशी

1940 - 2021 | कराची, पाकिस्तान

जाज़िब क़ुरैशी

ग़ज़ल 21

अशआर 14

क्यूँ माँग रहे हो किसी बारिश की दुआएँ

तुम अपने शिकस्ता दर-ओ-दीवार तो देखो

तेरी यादों की चमकती हुई मशअ'ल के सिवा

मेरी आँखों में कोई और उजाला ही नहीं

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मिरे वजूद के ख़ुश्बू-निगार सहरा में

वो मिल गए हैं तो मिल कर बिछड़ भी सकते हैं

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दफ़्तर की थकन ओढ़ के तुम जिस से मिले हो

उस शख़्स के ताज़ा लब-ओ-रुख़्सार तो देखो

मिरी शाइ'री में छुप कर कोई और बोलता है

सर-ए-आइना जो देखूँ तो वो शख़्स दूसरा है

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