1737 - 1801
मीर के समकालीन, अज़ीमाबाद स्कूल के प्रतिष्ठित शायर, दिल्ली स्कूल के रंग में शायरी के लिए मशहूर
अहवाल देख कर मिरी चश्म-ए-पुर-आब का
दरिया से आज टूट गया दिल हबाब का
उस के रुख़्सार पर कहाँ है ज़ुल्फ़
शोला-ए-हुस्न का धुआँ है ज़ुल्फ़
किस तरह तुझ से मुलाक़ात मयस्सर होवे
ये दुआ-गो तिरा ने ज़ोर न ज़र रखता है
ध्यान में उस के फ़ना हो कर कोई मुँह देख ले
दिल वो आईना नहीं जो हर कोई मुँह देख ले
छुप-छुप के देखते हो बहुत उस को हर कहीं
होगा ग़ज़ब जो पड़ गई उस की नज़र कहीं
दीवान-ए-जोशिश
1941
Deewan-e-Joshish
1976
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