कैलाश माहिर

ग़ज़ल 18

नज़्म 11

अशआर 3

तुम भी इस शहर में बन जाओगे पत्थर जैसे

हँसने वाला यहाँ कोई है रोने वाला

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जाने क्या सोच के हम तुझ से वफ़ा करते हैं

क़र्ज़ है पिछले जन्म का सो अदा करते हैं

रिश्ता-ए-दर्द की मीरास मिली है हम को

हम तिरे नाम पे जीने की ख़ता करते हैं

 

पुस्तकें 2

 

"मुरादाबाद" के और शायर

Recitation

aah ko chahiye ek umr asar hote tak SHAMSUR RAHMAN FARUQI

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