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कमाल अहमद सिद्दीक़ी

1926 - 2013 | दिल्ली, भारत

उरूज़ के विख्यात विशेषज्ञ और स्कॉलर।

उरूज़ के विख्यात विशेषज्ञ और स्कॉलर।

कमाल अहमद सिद्दीक़ी

ग़ज़ल 7

नज़्म 1

 

अशआर 6

कुछ लोग जो ख़ामोश हैं ये सोच रहे हैं

सच बोलेंगे जब सच के ज़रा दाम बढ़ेंगे

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पुर्सिश-ए-हाल भी इतनी कि मैं कुछ कह सकूँ

इस तकल्लुफ़ से करम हो तो सितम होता है

उस का तो एक लफ़्ज़ भी हम को नहीं है याद

कल रात एक शेर कहा था जो ख़्वाब में

एक दिल है कि उजड़ जाए तो बस्ता ही नहीं

एक बुत-ख़ाना है उजड़े तो हरम होता है

ज़िंदगी नाम इसी मौज-ए-मय-ए-नाब का है

मय-कदे से जो उठे दार-ओ-रसन तक पहुँचे

पुस्तकें 356

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