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करम हैदराबादी

करम हैदराबादी

ग़ज़ल 1

 

अशआर 2

वाइज़ ख़ता-मुआफ़ कि रिंदान-ए-मय-कदा

दिल के सिवा किसी का कहा मानते नहीं

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इश्क़ की दुनिया में क्या क्या हम को सौग़ातें मिलीं

सूनी सुब्हें रोती शामें जागती रातें मिलीं

 

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