aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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ख़ालिद मोईन

1962 | पाकिस्तान

ख़ालिद मोईन

ग़ज़ल 11

नज़्म 7

अशआर 13

मोहब्बत की तो कोई हद, कोई सरहद नहीं होती

हमारे दरमियाँ ये फ़ासले, कैसे निकल आए

लकीरें खींचते रहने से बन गई तस्वीर

कोई भी काम हो, बे-कार थोड़ी होता है

अजब पुर-लुत्फ़ मंज़र देखता रहता हूँ बारिश में

बदन जलता है और मैं भीगता रहता हूँ बारिश में

हाथ छुड़ा कर जाने वाले

मैं तुझ को अपना समझा था

इस शहर-ए-फ़ुसूँ-गर के अज़ाब और, सवाब और

हिज्र और तरह का है, विसाल और तरह का

पुस्तकें 3

 

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