ख़ालिद यूसुफ़
ग़ज़ल 13
अशआर 5
उसे ख़बर है कि अंजाम-ए-वस्ल क्या होगा
वो क़ुर्बतों की तपिश फ़ासले में रखती है
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फ़न का दावा है तो कुछ जुरअत-ए-इज़हार भी हो
ज़ेब देता नहीं फ़नकार को बुज़दिल होना
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ये अदाएँ ये इशारे ये हसीं क़ौल-ओ-क़रार
कितने आदाब के पर्दे में है इंकार की बात
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हम ने माना कि तिरे शहर में सब अच्छा है
कोई ईसा हो तो मिल जाएँगे बीमार बहुत
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हम हो गए शहीद ये ए'ज़ाज़ तो मिला
अहल-ए-जुनूँ को नुक्ता-ए-आग़ाज़ तो मिला
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