ख़ातिर ग़ज़नवी
ग़ज़ल 21
नज़्म 7
अशआर 16
गो ज़रा सी बात पर बरसों के याराने गए
लेकिन इतना तो हुआ कुछ लोग पहचाने गए
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इक तजस्सुस दिल में है ये क्या हुआ कैसे हुआ
जो कभी अपना न था वो ग़ैर का कैसे हुआ
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मैं इसे शोहरत कहूँ या अपनी रुस्वाई कहूँ
मुझ से पहले उस गली में मेरे अफ़्साने गए
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कैसी चली है अब के हवा तेरे शहर में
बंदे भी हो गए हैं ख़ुदा तेरे शहर में
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वहशतें कुछ इस तरह अपना मुक़द्दर बन गईं
हम जहाँ पहुँचे हमारे साथ वीराने गए
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पहेली 3
पुस्तकें 11
चित्र शायरी 4
जब उस ज़ुल्फ़ की बात चली ढलते ढलते रात ढली उन आँखों ने लूट के भी अपने ऊपर बात न ली शम्अ' का अंजाम न पूछ परवानों के साथ जली अब के भी वो दूर रहे अब के भी बरसात चली 'ख़ातिर' ये है बाज़ी-ए-दिल इस में जीत से मात भली
वीडियो 6
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