कुलदीप कुमार
ग़ज़ल 120
अशआर 4
मौसम-ए-याद यूँ उजलत में न वारे जाएँ
हम वो लम्हे हैं जो फ़ुर्सत से गुज़ारे जाएँ
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मैं हार जाता हूँ उन दो उदास आँखों से
मुझे सफ़र का इरादा बदलना पड़ता है
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हमीं बुझाते हैं लौ पहले सब चराग़ों की
फिर इन चराग़ों के हिस्से का जलना पड़ता है
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