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महशर इनायती

1909 - 1976 | रामपुर, भारत

रामपूर स्कूल के रंग मे शायरी करने वाले प्रतिष्ठित शायर

रामपूर स्कूल के रंग मे शायरी करने वाले प्रतिष्ठित शायर

महशर इनायती

ग़ज़ल 21

अशआर 14

उन का ग़म उन का तसव्वुर उन की याद

कट रही है ज़िंदगी आराम से

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चले भी आओ मिरे जीते-जी अब इतना भी

इंतिज़ार बढ़ाओ कि नींद जाए

किसी की बज़्म के हालात ने समझा दिया मुझ को

कि जब साक़ी नहीं अपना तो मय अपनी जाम अपना

हर एक बात ज़बाँ से कही नहीं जाती

जो चुपके बैठे हैं कुछ उन की बात भी समझो

बड़ी तवील है 'महशर' किसी के हिज्र की बात

कोई ग़ज़ल ही सुनाओ कि नींद जाए

पुस्तकें 3

 

ऑडियो 8

ख़ुश हैं बहुत मिज़ाज-ए-ज़माना बदल के हम

तिरे सुलूक-ए-तग़ाफ़ुल से हो के सौदाई

न ग़ैर ही मुझे समझो न दोस्त ही समझो

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