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मजीद अमजद

1914 - 1974 | पंजाब, पाकिस्तान

आधुनिक उर्दू शायरी के संस्थापकों में विख्यात।

आधुनिक उर्दू शायरी के संस्थापकों में विख्यात।

मजीद अमजद

ग़ज़ल 36

नज़्म 49

अशआर 19

मैं रोज़ इधर से गुज़रता हूँ कौन देखता है

मैं जब इधर से गुज़रूँगा कौन देखेगा

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हाए वो ज़िंदगी-फ़रेब आँखें

तू ने क्या सोचा मैं ने क्या समझा

सलाम उन पे तह-ए-तेग़ भी जिन्हों ने कहा

जो तेरा हुक्म जो तेरी रज़ा जो तू चाहे

मसीह-ओ-ख़िज़्र की उम्रें निसार हों उस पर

वो एक लम्हा जो यारों के दरमियाँ गुज़रे

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बड़े सलीक़े से दुनिया ने मेरे दिल को दिए

वो घाव जिन में था सच्चाइयों का चरका भी

पुस्तकें 4

 

चित्र शायरी 2

 

वीडियो 6

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
जिन लफ़्ज़ों में

जिन लफ़्ज़ों में हमारे दिलों की बैअतें हैं क्या सिर्फ़ वो लफ़्ज़ हमारे कुछ भी न करने मजीद अमजद

बने ये ज़हर ही वज्ह-ए-शिफ़ा जो तू चाहे

मजीद अमजद

हर वक़्त फ़िक्र-ए-मर्ग-ए-ग़रीबाना चाहिए

मजीद अमजद

और अब ये कहता हूँ ये जुर्म तो रवा रखता

मजीद अमजद

बने ये ज़हर ही वज्ह-ए-शिफ़ा जो तू चाहे

मजीद अमजद

ऑडियो 16

इक उम्र दिल की घात से तुझ पर निगाह की

और अब ये कहता हूँ ये जुर्म तो रवा रखता

कभी तो सोच तिरे सामने नहीं गुज़रे

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