मेला राम वफ़ा
ग़ज़ल 27
नज़्म 3
अशआर 8
इक बार उस ने मुझ को देखा था मुस्कुरा कर
इतनी तो है हक़ीक़त बाक़ी कहानियाँ हैं
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
गो क़यामत से पेशतर न हुई
तुम न आए तो क्या सहर न हुई
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
तुम भी करोगे जब्र शब ओ रोज़ इस क़दर
हम भी करेंगे सब्र मगर इख़्तियार तक
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
रातें ऐश-ओ-इशरत की दिन दुख दर्द मुसीबत के
आती आती आती हैं जाते जाते जाते हैं
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
कहना ही मिरा क्या है कि मैं कुछ नहीं कहता
ये भी तुम्हें धोका है कि मैं कुछ नहीं कहता
- अपने फ़ेवरेट में शामिल कीजिए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए