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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी तरक़्क़ी

मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी तरक़्क़ी

अशआर 2

'तरक़्क़ी' बात जी की जी में रख

मुँह से निकली और पराई हो गई

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हक़ीक़त छुप नहीं सकती बनावट के उसूलों से

कि ख़ुशबू नहीं सकती कभी काग़ज़ के फूलों से

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