Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Mirza Shauq Lakhnavi's Photo'

मिर्ज़ा शौक़ लखनवी

1773 - 1871 | लखनऊ, भारत

विश्व प्रसिद्ध मसनवी " ज़हर-ए-इश्क़ " के रचयिता

विश्व प्रसिद्ध मसनवी " ज़हर-ए-इश्क़ " के रचयिता

मिर्ज़ा शौक़ लखनवी

ग़ज़ल 2

 

अशआर 6

गए जो ऐश के दिन मैं शबाब क्या करता

लगा के जान को अपनी अज़ाब क्या करता

  • शेयर कीजिए

गेसू रुख़ पर हवा से हिलते हैं

चलिए अब दोनों वक़्त मिलते हैं

व्याख्या

इस शे’र में “दोनों वक़्त मिलते हैं” से शायर ने नवीनता का पहलू निकाला है। पूरा शे’र एक गतिशील आकृति है। गैसू का “हवा से रुख पर हिलना” और “दोनों वक़्त का मिलना” एक ख़ूबसूरत मंज़र पेश करता है। जब गैसू और रुख कहा तो मानो एक दृश्य आकृति अस्तित्व में आई, और जब दोनों वक़्त मिलना कहा तो उससे जो झुटपुटे का दृश्य बन गया उससे भी एक दृश्य आकृति बन गई।

शे’र में जो दशा वाली बात है वो गैसू के हवा से रुख पर ढलने और इन दोनों कारकों के नतीजे में दो वक़्त मिलने से पैदा कर दी गई है। शायर अपने महबूब के चेहरे पर हवा से केश हिलते हुए देखता है। जब हवा से प्रियतम के दीप्त चेहरे पर ज़ुल्फ़ें हिलती हैं तो शायर कुछ लम्हों के लिए रोशनी और कुछ क्षण के लिए अंधेरे का अनुभव करता है। इस दृश्य की उपमा वो झुटपुटे से देता है। मगर इससे बढ़कर मुख्य बिंदु वाली बात है वो है “चलिए अब”

अर्थात आम आदमी शाम के वक़्त अपने घर चला जाता है, उसी आधार पर शायर कहता है कि चूँकि प्रियतम के चेहरे पर झुटपुटे का दृश्य दिखाई देता है इसलिए अब चला जाना चाहिए।

शफ़क़ सुपुरी

  • शेयर कीजिए

चमन में शब को घिरा अब्र-ए-नौ-बहार रहा

हुज़ूर आप का क्या क्या इंतिज़ार रहा

  • शेयर कीजिए

देख लो हम को आज जी भर के

कोई आता नहीं है फिर मर के

  • शेयर कीजिए

साबित ये कर रहा हूँ कि रहमत-शनास हूँ

हर क़िस्म का गुनाह किए जा रहा हूँ मैं

  • शेयर कीजिए

मसनवी 1

 

पुस्तकें 41

"लखनऊ" के और शायर

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए