aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
रामपुर, भारत
अगर उर्यानी-ए-मजनूँ पे आता रहम लैला को
बना देती क़बा वो चाक कर के पर्दा महमिल का
कूचा-ए-जानाँ में यारो कौन सुनता है मिरी
मुझ से वाँ फिरते हैं लाखों दाद और बे-दाद में
जी में आता है मय-कशी कीजे
ताक कर कोई साया-दार दरख़्त
तर्क-ए-शराब भी जो करूँगा तो मोहतसिब
तोडूँगा तेरे सर से पियाला शराब का
वो सुब्ह को इस डर से नहीं बाम पर आता
नामा न कोई बाँध दे सूरज की किरन में
Deewan-e-Ghafil
1872
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