मुंशी ख़ुशवक़्त अली ख़ुर्शीद के शेर
पीरी में वलवले वो कहाँ हैं शबाब के
इक धूप थी कि साथ गई आफ़्ताब के
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere