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नातिक़ लखनवी

1878 - 1950 | लखनऊ, भारत

नातिक़ लखनवी

ग़ज़ल 25

अशआर 14

आज़ादियों का हक़ अदा हम से हो सका

अंजाम ये हुआ कि गिरफ़्तार हो गए

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इक दाग़-ए-दिल ने मुझ को दिए बे-शुमार दाग़

पैदा हुए हज़ार चराग़ इस चराग़ से

इब्तिदा से आज तक 'नातिक़' की ये है सरगुज़िश्त

पहले चुप था फिर हुआ दीवाना अब बेहोश है

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उन के लब पर ज़िक्र आया बे-हिजाबाना मेरा

मंज़िल-ए-तकमील तक पहुँचा अब अफ़्साना मेरा

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सदक़े तिरे होते हैं सूरज भी सितारे भी

हम किस से कहें दिल है सीने में हमारे भी

पुस्तकें 7

 

चित्र शायरी 2

 

ऑडियो 6

आँसुओं से ख़ून के अजज़ा बदलते जाएँगे

ऐ शम्अ' तुझ पे रात ये भारी है जिस तरह

ख़ून-ए-दिल का जो कुछ अश्कों से पता मिलता है

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