निहाल सेवहारवी
ग़ज़ल 14
अशआर 1
तुम जो आए हो तो शक्ल-ए-दर-ओ-दीवार है और
कितनी रंगीन मिरी शाम हुई जाती है
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere