Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Obaidullah Aleem's Photo'

उबैदुल्लाह अलीम

1939 - 1998 | कराची, पाकिस्तान

पाकिस्तान के अग्रणी आधुनिक शायरों में शामिल।

पाकिस्तान के अग्रणी आधुनिक शायरों में शामिल।

उबैदुल्लाह अलीम के शेर

54K
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

काश देखो कभी टूटे हुए आईनों को

दिल शिकस्ता हो तो फिर अपना पराया क्या है

अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए

अब इस क़दर भी चाहो कि दम निकल जाए

बोले नहीं वो हर्फ़ जो ईमान में थे

लिक्खी नहीं वो बात जो अपनी नहीं थी बात

एक चेहरे में तो मुमकिन नहीं इतने चेहरे

किस से करते जो कोई इश्क़ दोबारा करते

कल मातम बे-क़ीमत होगा आज उन की तौक़ीर करो

देखो ख़ून-ए-जिगर से क्या क्या लिखते हैं अफ़्साने लोग

ख़ुर्शीद मिसाल शख़्स कल शाम

मिट्टी के सुपुर्द कर दिया है

जब मिला हुस्न भी हरजाई तो उस बज़्म से हम

इश्क़-ए-आवारा को बेताब उठा कर ले आए

ज़मीन जब भी हुई कर्बला हमारे लिए

तो आसमान से उतरा ख़ुदा हमारे लिए

जो दिल को है ख़बर कहीं मिलती नहीं ख़बर

हर सुब्ह इक अज़ाब है अख़बार देखना

अब तो मिल जाओ हमें तुम कि तुम्हारी ख़ातिर

इतनी दूर गए दुनिया से किनारा करते

मैं एक से किसी मौसम में रह नहीं सकता

कभी विसाल कभी हिज्र से रिहाई दे

अगर हों कच्चे घरोंदों में आदमी आबाद

तो एक अब्र भी सैलाब के बराबर है

तुम अपने रंग नहाओ मैं अपनी मौज उड़ूँ

वो बात भूल भी जाओ जो आनी-जानी हुई

इंसान हो किसी भी सदी का कहीं का हो

ये जब उठा ज़मीर की आवाज़ से उठा

दुआ करो कि मैं उस के लिए दुआ हो जाऊँ

वो एक शख़्स जो दिल को दुआ सा लगता है

हवा के दोश पे रक्खे हुए चराग़ हैं हम

जो बुझ गए तो हवा से शिकायतें कैसी

बाहर का धन आता जाता असल ख़ज़ाना घर में है

हर धूप में जो मुझे साया दे वो सच्चा साया घर में है

ये कैसी बिछड़ने की सज़ा है

आईने में चेहरा रख गया है

जो रही है सदा ग़ौर से सुनो उस को

कि इस सदा में ख़ुदा बोलता सा लगता है

बड़ी आरज़ू थी हम को नए ख़्वाब देखने की

सो अब अपनी ज़िंदगी में नए ख़्वाब भर रहे हैं

आओ तुम ही करो मसीहाई

अब बहलती नहीं है तन्हाई

तुम हम-सफ़र हुए तो हुई ज़िंदगी अज़ीज़

मुझ में तो ज़िंदगी का कोई हौसला था

रौशनी आधी इधर आधी उधर

इक दिया रक्खा है दीवारों के बीच

मेरे ख़्वाब मिरी आँखों को रंग दे

मेरी रौशनी तू मुझे रास्ता दिखा

हज़ार तरह के सदमे उठाने वाले लोग

जाने क्या हुआ इक आन में बिखर से गए

मैं उस को भूल गया हूँ वो मुझ को भूल गया

तो फिर ये दिल पे क्यूँ दस्तक सी ना-गहानी हुई

आँख से दूर सही दिल से कहाँ जाएगा

जाने वाले तू हमें याद बहुत आएगा

अहल-ए-दिल के दरमियाँ थे 'मीर' तुम

अब सुख़न है शोबदा-कारों के बीच

शायद कि ख़ुदा में और मुझ में

इक जस्त का और फ़ासला है

शायद इस राह पे कुछ और भी राही आएँ

धूप में चलता रहूँ साए बिछाए जाऊँ

जिस को मिलना नहीं फिर उस से मोहब्बत कैसी

सोचता जाऊँ मगर दिल में बसाए जाऊँ

फिर इस तरह कभी सोया इस तरह जागा

कि रूह नींद में थी और जागता था मैं

ज़मीं के लोग तो क्या दो दिलों की चाहत में

ख़ुदा भी हो तो उसे दरमियान लाओ मत

जवानी क्या हुई इक रात की कहानी हुई

बदन पुराना हुआ रूह भी पुरानी हुई

सुख़न में सहल नहीं जाँ निकाल कर रखना

ये ज़िंदगी है हमारी सँभाल कर रखना

खा गया इंसाँ को आशोब-ए-मआश

गए हैं शहर बाज़ारों के बीच

पलट सकूँ ही आगे ही बढ़ सकूँ जिस पर

मुझे ये कौन से रस्ते लगा गया इक शख़्स

मैं तन्हा था मैं तन्हा हूँ

तुम आओ तो क्या आओ तो क्या

ख़्वाब ही ख़्वाब कब तलक देखूँ

काश तुझ को भी इक झलक देखूँ

हज़ार राह चले फिर वो रहगुज़र आई

कि इक सफ़र में रहे और हर सफ़र से गए

दरूद पढ़ते हुए उस की दीद को निकलें

तो सुब्ह फूल बिछाए सबा हमारे लिए

शिकस्ता-हाल सा बे-आसरा सा लगता है

ये शहर दिल से ज़ियादा दुखा सा लगता है

मुझ से मिरा कोई मिलने वाला

बिछड़ा तो नहीं मगर मिला दे

कोई और तो नहीं है पस-ए-ख़ंजर-आज़माई

हमीं क़त्ल हो रहे हैं हमीं क़त्ल कर रहे हैं

सुब्ह-ए-चमन में एक यही आफ़्ताब था

इस आदमी की लाश को एज़ाज़ से उठा

तू बू-ए-गुल है और परेशाँ हुआ हूँ मैं

दोनों में एक रिश्ता-ए-आवारगी तो है

दोस्तो जश्न मनाओ कि बहार आई है

फूल गिरते हैं हर इक शाख़ से आँसू की तरह

हाए वो लोग गए चाँद से मिलने और फिर

अपने ही टूटे हुए ख़्वाब उठा कर ले आए

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए