aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1864 - 1916 | दिल्ली, भारत
किया है चश्म-ए-मुरव्वत ने आज माइल-ए-मेहर
मैं उन की बज़्म से कल आबदीदा आया था
दिल भी अब पहलू-तही करने लगा
हो गया तुम सा तुम्हारी याद में
निगह-ए-नाज़ से इस चुस्त क़बा ने देखा
शौक़ बेताब गुल-ए-चाक-ए-गरेबाँ समझा
महव-ए-लिक़ा जो हैं मलकूती-ख़िसाल हैं
बेदार हो के भी नज़र आते हैं ख़्वाब में
सिक्का अपना नहीं जमता है तुम्हारे दिल पर
नक़्श अग़्यार के किस तौर से जम जाते हैं
कुल्लियात-ए-साक़ी
1926
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