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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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परवेज़ साहिर

परवेज़ साहिर

ग़ज़ल 9

अशआर 6

वक़्त अच्छा ज़रूर आता है

पर कभी वक़्त पर नहीं आता

इतना बे-आसरा नहीं हूँ मैं

आदमी हूँ ख़ुदा नहीं हूँ मैं

मेरी फ़ितरत ही में शामिल है मोहब्बत करना

और फ़ितरत कभी तब्दील नहीं हो सकती

'साहिर' ये मेरा दीदा-ए-गिर्यां है और मैं

सहरा में कोई दूसरा झरना तो है नहीं

पूछा था मैं ने जब उसे क्या मुझ से इश्क़ है?

उस को मिरे सवाल पे हैरत नहीं हुई

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