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पीर शेर मोहम्मद आजिज़

पीर शेर मोहम्मद आजिज़

ग़ज़ल 8

अशआर 9

तो मैं हूर का मफ़्तूँ परी का आशिक़

ख़ाक के पुतले का है ख़ाक का पुतला आशिक़

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जब उस ने मिरा ख़त छुआ हाथ से अपने

क़ासिद ने भी चिपका दिया दीवार से काग़ज़

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किसी की ज़ुल्फ़ के सौदे में रात की है बसर

किसी के रुख़ के तसव्वुर में दिन तमाम किया

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शब-ए-वस्ल आज वो ताकीद करते हैं मोहब्बत से

अभी सो रहने दो कुछ रात गुज़रे तो जगा लेना

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सुना है अर्श-ए-इलाही इसी को कहते हैं

तवाफ़-ए-काबा-ए-दिल हम ने सुब्ह-ओ-शाम किया

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पुस्तकें 4

 

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aah ko chahiye ek umr asar hote tak SHAMSUR RAHMAN FARUQI

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