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Qamar Abbas Qamar's Photo'

क़मर अब्बास क़मर

1993 | दिल्ली, भारत

नई नस्ल के नुमाइंदा शाइर, नौजवानों में मक़बूल, ग़ज़ल की शायरी की एक मुनफ़रिद आवाज़

नई नस्ल के नुमाइंदा शाइर, नौजवानों में मक़बूल, ग़ज़ल की शायरी की एक मुनफ़रिद आवाज़

क़मर अब्बास क़मर

ग़ज़ल 16

नज़्म 3

 

अशआर 18

तिश्ना-लब ऐसा कि होंटों पे पड़े हैं छाले

मुतमइन ऐसा हूँ दरिया को भी हैरानी है

मेरे माथे पे उभर आते थे वहशत के नुक़ूश

मेरी मिट्टी किसी सहरा से उठाई गई थी

पहाड़ पेड़ नदी साथ दे रहे हैं मिरा

ये तेरी ओर मिरा आख़िरी सफ़र तो नहीं

ये एहतिजाज अजब है ख़िलाफ़-ए-तेग़-ए-सितम

ज़मीं में जज़्ब नहीं हो रहा है ख़ूँ मेरा

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सर्द रातों का तक़ाज़ा था बदन जल जाए

फिर वो इक आग जो सीने से लगाई मैं ने

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क़ितआ 3

 

नस्री-नज़्म 1

 

वीडियो 13

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

क़मर अब्बास क़मर

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