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क़मर जलालवी

1887 - 1968 | कराची, पाकिस्तान

पाकिस्तान के उस्ताद शायर, कई लोकप्रिय शेरों के रचयिता।

पाकिस्तान के उस्ताद शायर, कई लोकप्रिय शेरों के रचयिता।

क़मर जलालवी

ग़ज़ल 56

अशआर 39

ज़रा रूठ जाने पे इतनी ख़ुशामद

'क़मर' तुम बिगाड़ोगे आदत किसी की

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शुक्रिया क़ब्र तक पहुँचाने वालो शुक्रिया

अब अकेले ही चले जाएँगे इस मंज़िल से हम

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सुना है ग़ैर की महफ़िल में तुम जाओगे

कहो तो आज सजा लूँ ग़रीब-ख़ाने को

ज़ब्त करता हूँ तो घुटता है क़फ़स में मिरा दम

आह करता हूँ तो सय्याद ख़फ़ा होता है

पूछो अरक़ रुख़्सारों से रंगीनी-ए-हुस्न को बढ़ने दो

सुनते हैं कि शबनम के क़तरे फूलों को निखारा करते हैं

क़ितआ 7

पुस्तकें 7

 

चित्र शायरी 1

 

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

क़मर जलालवी

क़मर जलालवी

क़मर जलालवी

क़मर जलालवी

क़मर जलालवी

क़मर जलालवी

क़मर जलालवी

क़मर जलालवी

क़मर जलालवी

क़मर जलालवी

क़मर जलालवी

क़मर जलालवी

क़मर जलालवी

क़मर जलालवी

क़मर जलालवी

क़मर जलालवी

क़मर जलालवी

क़मर जलालवी

क़मर जलालवी

तौबा कीजे अब फ़रेब-ए-दोस्ती खाएँगे क्या

क़मर जलालवी

क़मर जलालवी

उन के जाते ही ये वहशत का असर देखा किए

क़मर जलालवी

कब मेरा नशेमन अहल-ए-चमन गुलशन में गवारा करते हैं

क़मर जलालवी

कभी कहा न किसी से तिरे फ़साने को

क़मर जलालवी

तुम को हम ख़ाक-नशीनों का ख़याल आने तक

क़मर जलालवी

तौबा कीजे अब फ़रेब-ए-दोस्ती खाएँगे क्या

क़मर जलालवी

पीते ही सुर्ख़ आँखें हैं मस्त-ए-शराब की

क़मर जलालवी

ये दर्द-ए-हिज्र और इस पर सहर नहीं होती

क़मर जलालवी

ये रोज़ हश्र का और शिकवा-ए-वफ़ा के लिए

क़मर जलालवी

राज़-ए-दिल क्यूँ न कहूँ सामने दीवानों के

क़मर जलालवी

साँस उन के मरीज़-ए-हसरत की रुक रुक के चलती जाती है

क़मर जलालवी

ऑडियो 10

अबरू तो दिखा दीजिए शमशीर से पहले

कब मेरा नशेमन अहल-ए-चमन गुलशन में गवारा करते हैं

करते भी क्या हुज़ूर न जब अपने घर मिले

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