क़मर सुरूर
ग़ज़ल 11
अशआर 1
धूप रुस्वाई का सामान लिए फिरती है
उस को आना था तो आ जाता मगर शाम के बाद
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere