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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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रईस फ़रोग़

1926 - 1982 | कराची, पाकिस्तान

नई ग़ज़ल के अग्रणी पाकिस्तानी शायरों में विख्यात।

नई ग़ज़ल के अग्रणी पाकिस्तानी शायरों में विख्यात।

रईस फ़रोग़

ग़ज़ल 32

नज़्म 32

अशआर 20

अब की रुत में जब धरती को बरखा की महकार मिले

मेरे बदन की मिट्टी को भी रंगों में नहला देना

इश्क़ वो कार-ए-मुसलसल है कि हम अपने लिए

एक लम्हा भी पस-अंदाज़ नहीं कर सकते

घर में तो अब क्या रक्खा है वैसे आओ तलाश करें

शायद कोई ख़्वाब पड़ा हो इधर उधर किसी कोने में

फ़स्ल तुम्हारी अच्छी होगी जाओ हमारे कहने से

अपने गाँव की हर गोरी को नई चुनरिया ला देना

मेरा भी एक बाप था अच्छा सा एक बाप

वो जिस जगह पहुँच के मरा था वहीं हूँ मैं

पुस्तकें 2

 

वीडियो 3

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

रईस फ़रोग़

ऊँची ऊँची शहनाई है

रईस फ़रोग़

किसी किसी की तरफ़ देखता तो मैं भी हूँ

रईस फ़रोग़

"कराची" के और शायर

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