राजेश रेड्डी
ग़ज़ल 35
अशआर 37
यहाँ हर शख़्स हर पल हादसा होने से डरता है
खिलौना है जो मिट्टी का फ़ना होने से डरता है
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जितनी बटनी थी बट चुकी ये ज़मीं
अब तो बस आसमान बाक़ी है
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ये जो ज़िंदगी की किताब है ये किताब भी क्या किताब है
कहीं इक हसीन सा ख़्वाब है कहीं जान-लेवा अज़ाब है
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मिरे दिल के किसी कोने में इक मासूम सा बच्चा
बड़ों की देख कर दुनिया बड़ा होने से डरता है
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मैं ने तो ब'अद में तोड़ा था इसे
आईना मुझ पे हँसा था पहले
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चित्र शायरी 6
वीडियो 18
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