राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल 76
नज़्म 13
अशआर 44
उड़ चला वो इक जुदा ख़ाका लिए सर में अकेला
सुब्ह का पहला परिंदा आसमाँ भर में अकेला
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किसी के लौटने की जब सदा सुनी तो खुला
कि मेरे साथ कोई और भी सफ़र में था
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फैलती जाएगी चारों सम्त इक ख़ुश-रौनक़ी
एक मौसम मेरे अंदर से निकलता जाएगा
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याद तिरी जैसे कि सर-ए-शाम
धुँद उतर जाए पानी में
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वो लोग जो कभी बाहर न घर से झाँकते थे
ये शब उन्हें भी सर-ए-रहगुज़ार ले आई
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पुस्तकें 9
चित्र शायरी 7
वीडियो 3
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