रंगीन सआदत यार ख़ाँ
ग़ज़ल 10
अशआर 9
ज़ुल्म की टहनी कभी फलती नहीं
नाव काग़ज़ की कहीं चलती नहीं
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बादल आए हैं घिर गुलाल के लाल
कुछ किसी का नहीं किसी को ख़याल
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झूटा कभी न झूटा होवे
झूटे के आगे सच्चा रोवे
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है ये दुनिया जा-ए-इबरत ख़ाक से इंसान की
बन गए कितने सुबू कितने ही पैमाने हुए
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पा-बोस-ए-यार की हमें हसरत है ऐ नसीम
आहिस्ता आइओ तू हमारे मज़ार पर
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