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रिन्द लखनवी

1797 - 1857 | लखनऊ, भारत

रिन्द लखनवी

ग़ज़ल 37

अशआर 51

टूटे बुत मस्जिद बनी मिस्मार बुत-ख़ाना हुआ

जब तो इक सूरत भी थी अब साफ़ वीराना हुआ

चाँदनी रातों में चिल्लाता फिरा

चाँद सी जिस ने वो सूरत देख ली

अंदलीब मिल के करें आह-ओ-ज़ारियाँ

तू हाए गुल पुकार मैं चिल्लाऊँ हाए दिल

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काबे को जाता किस लिए हिन्दोस्ताँ से मैं

किस बुत में शहर-ए-हिन्द के शान-ए-ख़ुदा थी

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मौत जाए क़ैद में सय्याद

आरज़ू हो अगर रिहाई की

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क़ितआ 1

 

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