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सबा अकबराबादी

1908 - 1991 | कराची, पाकिस्तान

सबा अकबराबादी

ग़ज़ल 26

अशआर 34

अपने जलने में किसी को नहीं करते हैं शरीक

रात हो जाए तो हम शम्अ बुझा देते हैं

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इक रोज़ छीन लेगी हमीं से ज़मीं हमें

छीनेंगे क्या ज़मीं के ख़ज़ाने ज़मीं से हम

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समझेगा आदमी को वहाँ कौन आदमी

बंदा जहाँ ख़ुदा को ख़ुदा मानता नहीं

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ग़लत-फ़हमियों में जवानी गुज़ारी

कभी वो समझे कभी हम समझे

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आप के लब पे और वफ़ा की क़सम

क्या क़सम खाई है ख़ुदा की क़सम

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पुस्तकें 14

चित्र शायरी 7

 

वीडियो 8

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

सबा अकबराबादी

सबा अकबराबादी

सबा अकबराबादी

सबा अकबराबादी

सबा अकबराबादी

सबा अकबराबादी

तुझ से दामन-कशाँ नहीं हूँ मैं

सबा अकबराबादी

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