सईद अहमद
ग़ज़ल 9
नज़्म 13
अशआर 9
उस दिन से पानियों की तरह बह रहे हैं हम
जिस दिन से पत्थरों का इरादा समझ लिया
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कुछ लोग इब्तिदा-ए-रिफ़ाक़त से क़ब्ल ही
आइंदा के हर एक गुज़िश्ता तक आ गए
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ख़ुश्क पत्तों में किसी याद का शोला है 'सईद'
मैं बुझाता हूँ मगर आग भड़क जाती है
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जल थल का ख़्वाब था कि किनारे डुबो गया
तन्हा कँवल भी झील से बाहर निकल पड़ा
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शोरिश-ए-वक़्त हुई वक़्त की रफ़्तार में गुम
दिन गुज़रते हैं तिरे ख़्वाब के आसार में गुम
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