सफ़दर हमदानी
ग़ज़ल 18
अशआर 1
आज फिर शानों पे बिखरी ज़ुल्फ़ है अल्लाह ख़ैर
लग रहा है आज फिर अह्द-ए-बग़ावत कर लिया
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere