सलीम बेताब
ग़ज़ल 30
नज़्म 1
अशआर 5
मैं ने तो यूँही राख में फेरी थीं उँगलियाँ
देखा जो ग़ौर से तिरी तस्वीर बन गई
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वो कौन है जो मिरे साथ साथ चलता है
ये देखने को कई बार रुक गया हूँ मैं
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सरमा की रात रेल का डिब्बा उदासियाँ
लम्बा सफ़र है और तिरा साथ भी नहीं
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'बेताब' लड़कियों की जसारत तो देखिए
ख़ुद को शुमार करती हैं सब अप्सराओं में
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